...

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पूर्ण समर्पित जड़
तुम क्या अग्नि का आवरण हो?
दुर्धर, क्या अपारगम्य हो?
अथवा सम्यक जागरण हो?
या नव उषा का आगमन हो?

विद्रोह सविनय आमरण हो
जीवन सुधा, शुभ संचयन हो
तत्पुरुष, आर्द्र चितवन हो
या प्रेम का आदि आकर्षण हो

चिर व्याप्ति का समुद्र हो
जीव बुद्धि का अतिक्रमण हो
क्या विज्ञप्ति आर्य है भी
यदि पूर्ण समर्पित जड़ हो

क्या तृष्णा, संकल्प, कृत्य
से विशिष्ठ भी कुछ कर सकते है
क्या स्वयं के उल्लंघन से च्युत
हम पराक्रम कोई कर सकते हैं





















© Mahamegh