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कहाँ सीखा है....
चिकनी सतह पर
चलने वाले जब
पत्थरों पर चल रहे थे।
गिरते पड़ते संभल
रहे थे तब पत्थरों को
तोड़ते लोगों ने कहा।
अभी तुमने चलना कहाँ सीखा है
जब दीपक को हवाओं ने
बुझा रखा था
तब पछिया हवाओं ने कहा
मेरे चलने पर
एक चिंगारी भी
झुग्गी झोपड़ियों
को जलाकर राख
कर देती है
अभी तुमने जलना कहाँ सीखा है
इठलाती थी वह
मॉडर्न कपड़ों में
अपनी सुंदरता को देखकर
देखा जब उसने एक दिन
खुद पर लाल चुनरिया डालकर
आईने ने कहा उससे
अभी तुमने संवरना कहाँ सीखा है।
इतनी टूट चुकी थी मैं उस दिन तेरी बातों से
तोड़ के फेंक दिया था मोतियों की माला अपने हाथों से
कहा उस मोतियों ने मुझसे फिर से पिरो कर दिखाओ मुझे धागे में
ढूंढती रह गई बिखरे हुए मोतियों को पर ढूंढ
ना पाई मैं
तब उस मोतियों ने कहा मुझसे अभी
तुमने बिखरना कहाँ सीखा है।
© shalini ✍️
#lifelesson
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