...

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ऐसा ही जीवन
उलझ गए हम अपनी बनायी दुनिया में
कोई बेरोजगारी से त्रस्त है
कोई अपने काम से

कोई रिश्तो में परेशान है
तो कोई को अपनो को बचाने या बनाने में

किसी के सपने पूरे नहीं हो रहे तो
और बहुतों की कमाई ही अपर्याप्त है

बस यही, इस दुनिया की दुनियादारी है
और क्या कहा जा सकता है
जो खुश हैं उनके अंदर भी बेचैनी है
कि कहीं से कुछ और मिलें।

बेशक। कहानी खत्म किसी की होती नहीं
कुछ न कुछ जुड़ेगें ,जब साँसे चलती रही

आख़िर में सबकुछ भ्रम है
अगर मलाल रह भी गया तो भी भ्रम ही है।