...

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प्रेम तुम्हारा.. शाश्वत.!
प्रेम तुम्हारा,
अनिश्चित,अनन्त,अकल्पनीय,अडिग,अविचल, अमर्त्य,अजेय,है..
और उसकी अनुभूति पूज्यत,शाश्वत,है,
तुम्हारा प्रेम जो हमने किया..और जो पाया, वो सब है,
प्रेम संघर्ष था,जो कर लिया..लेकिन सीख अब रहे हैं प्रेम को..
इसमें जीवित रहना चाहते हैं हम..
जितना प्रेम मैंने इस प्रकृति से किया..उतना ही है तुमसे..
प्रकृति यानी ईश्वर.. और हां तुमसे प्रेम,ईश्वरीय आराधना है हमारी..!!

आकांक्षा मगन "सरस्वती"

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