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"खोया हुआ पल - बचपन”

लगता है चंचल पर है बड़ा मासूम सा ये,
उड़ने की चाह है पर है क़ैद परिंदा सा ये।

होता छुपा हर उम्र में ये,ना होती इसकी उम्र कोई ,
है अजर अमर सा ये रहता सबके दिलो में ये।

बस दिल को दिलासा देते रहते हम,
कहते हो गए है बड़े अब हम।

वो अठखेलियाँ करना हमारा,
वो तितलियों के पीछे भागना हमारा ।

कर जाए कोई ग़लती हम बचपन में,
तो मासूम सा बन जाना हमारा।

होता बड़ा भोला सा ये बचपन,
करता कई नादानियाँ ये बचपन।

रूठ भी जाना ओर जल्दी मान जाना हमारा,
इसलिए कहते है भोला सा है ये बचपन हमारा ।

वो करना ग़लती कभी ओर बड़ों से डरना हमारा,
छिप जाना कंही ओर डाँट से बचना हमारा ।

डर जाना कभी किसी बात से ,
ओर रातों को जागना हमारा ।

रहना अपनी ही दुनिया में खोए हमेशा,
ओर अनोखी अपनी दुनिया बनाना हमारा ।

बचपन ही तो है जो ना रखता भेद किसी में ,
अपना समझता ओर मिलकर रहता सभी में।

ना कोई जात पात ना ऊँच नीच समझे ये,
रखे सबको एक समान ओर बाँटे प्यार सभी में ।

अगर हो उम्र में छोटे तो है बचपन तुम्हारा,
बदल दो ये सोच ओर ढूँढो इसे ये है तुम्हारा ।

ख़्वाहिश है बस एक ही जीवन में मेरी ,
काश लौट आए फिर दोबारा ये बचपन हमारा ।