...

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वो बारिश की शाम
मैं खोया तुम्हारे खयालों में,कुछ लिख रहा था,
बैठा उस शाम में, बारिश की बूंदों के बीच,
सिर ढके बिना, बस तुम्हारे साथ बिताए
हर लम्हे को उन बूंदों के साथ गिन रहा था।

गीले बालों से टपकती बारिश की बूंदें और बदन से चिपका हुआ वो आसमानी सूट, मुझे तुम्हारी ओर खींच रहा था।

अपनी लटों को धीरे से सवार कर, तुम बारिश में

बारिश तेज़ हुई, और बूंदे बारिश की आपके होंठों से होती हुई धीरे से नीचे को चली आई।

मैं तो बैठा मुस्कुरा रहा था,

तभी पीछे से मा ने आवाज़ लगाई -
एक दिन हुआ है उसे घर गए,
उसे इतना याद करेगा तो बाकी का एक हफ्ता कैसे रहेगा?

फिर हस्ते हुए, मेरे बाल बिखेरते हुए,
मेरा फ़ोन रख कर चली गई,
जिस पर किसी का नाम दिख रहा था,
और मेरी मुस्कान शायद और बड़ी हो गई
क्योंकि ज़िंदगी तो अब उसी से थी।

© inked_heights

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