बिना किसी गलती के
न तो मेरा वो अपना था
न ही मेरा कोई मित्र सखा
पुरानी सखी का मित्र था वो
जिसने मित्रता का मान न किया।
थोड़ी मेरी किस्मत खराब थी
उसकी नीयत से अनजान थी
बातें करता था मुझसे वो
मैं भी उसकी थोड़ी सुनती थी।
लिप्त होकर भी वासना में
उसने मुझे बख्शा था
बात रखी थी मेरी और
संभोग नहीं मुझ...
न ही मेरा कोई मित्र सखा
पुरानी सखी का मित्र था वो
जिसने मित्रता का मान न किया।
थोड़ी मेरी किस्मत खराब थी
उसकी नीयत से अनजान थी
बातें करता था मुझसे वो
मैं भी उसकी थोड़ी सुनती थी।
लिप्त होकर भी वासना में
उसने मुझे बख्शा था
बात रखी थी मेरी और
संभोग नहीं मुझ...