...

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*** जिरह ***
*** ग़ज़ल ***
*** जिरह ***

" यूं सोचना तुझे मेरा लाजमी हैं ,
फकत तुझे भी कुछ एहसास हो तो सही ,
बेवक्त यूं ही तु‌झे मयस्सर किया करु ,
कभी तो मेरी बात तेरे लब पे भी आये सही ."
तु फकत एहसास सा गुजराता कभी हमनशी ,
जैसे की चांद अभी अभी बादलों का सय लिया हो सही ,
तकब्बुर क्या करूं मैं कि अभी कुछ बात बन रही ,
यू सोचना तूझे मेरा लाजमी हैं ,
फकत तुझे भी कुछ एहसास हो तो सही ,
मेरे लहजों में तेरा आना अभी उस तरह मुक्कर हुआ ही नहीं ,
दे के सौगात तुम्हें उस तरह मना भी लु तो किसी का क्या जायेगा ,
तेरे दिल में मेरे लिए वो कसक कहीं घर बनाये तो सही ,
ये बात तेरे दिल से कहीं मुनासिब हो भी जायेगा ,
कभी आननफानन में दिल को किसी तरह जिरह कर के मानाये तो सही. "

--- रबिन्द्र राम
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© Rabindra Ram