ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
जी लो यारों
क्या पता कब बुझ जाए ये लौ
घट रही हैं ये पल पल
आ चल जी ले इसको यारों
सपनें ताना बुन रहें
ख्वाहिशें मचल रही हैं
उमंगें जवां हो चली
चाहतें पेंगें मार रही
आहट हो चली अब तो
मुलाकात सोच रही हैं
मिल जाये सब वो...
जी लो यारों
क्या पता कब बुझ जाए ये लौ
घट रही हैं ये पल पल
आ चल जी ले इसको यारों
सपनें ताना बुन रहें
ख्वाहिशें मचल रही हैं
उमंगें जवां हो चली
चाहतें पेंगें मार रही
आहट हो चली अब तो
मुलाकात सोच रही हैं
मिल जाये सब वो...