जीवन की साँझ
सजाया था जिस नीड़ को ,प्यार की फुलवारी से,
उसी नीड़ में दो पल का , ठिकाना न हुआ मेरा,
खुले आसमान के नीचे अब मेरी ,गुजरती हैं रातें,
वक़्त का सितम देखो , कि मुझे छल गया सवेरा,
...
उसी नीड़ में दो पल का , ठिकाना न हुआ मेरा,
खुले आसमान के नीचे अब मेरी ,गुजरती हैं रातें,
वक़्त का सितम देखो , कि मुझे छल गया सवेरा,
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