...

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जीवन की साँझ
सजाया था जिस नीड़ को ,प्यार की फुलवारी से,
उसी नीड़ में दो पल का , ठिकाना न हुआ मेरा,

खुले आसमान के नीचे अब मेरी ,गुजरती हैं रातें,
वक़्त का सितम देखो , कि मुझे छल गया सवेरा,

तिनका तिनका जोड़कर, जिस घर की नींव रखी,
उस घर की दरों दीवार पर , अब हक़ न रहा मेरा,

कतरा कतरा खून से मैंने ,सींची थी जो फुलवारी,
उस चमन के ही फूल ने ,तिरस्कार किया मेरा,

बनाया था घर मैंने जो ,अब मकान रह गया है,
अब मिट गया दिलों से सबके ,प्रेम का बसेरा ।।

-पूनम आत्रेय


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