...

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धर्म....
खुद के अंदर के भगवान को खोकर
मूर्तियों में भगवान खोज रहा है
नदियों में नाले बहाकर
उसी नदी में जाकर पाप धो रहा है
धर्म के नाम पर यह कैसा माया का खेल हो रहा है
ढोंगीयो के सामने पूरा समाज झुक रहा है..

धर्म कहता है कि,ना पाप कर तू
धर्म के नाम पर यहां हजारों बिक रहे क्यों?
राजनीति में तो धर्म चोटी पर है
रंगो के नाम पर,धर्म के मान पर
सबको लड़वाने की यह नेताओं की कोशिश है..

बाबाओं के सामने जाकर फूल चढ़ाएंगे
दान के नाम पर उनको लाखों दे आएंगे
पर कभी उनके पीछे छिपा हैवान ना देख पाएंगे
धर्म करना है तो भूखे का पेट भर
धर्म के नाम पर परोपकार कर..

तेरे अंदर की सच्चाई ,प्रेम , खुशी ,दया तेरा धर्म है
और छल ,लोभ ,बुराई ,गुस्सा ,नफरत तेरा अधर्म है
अब तेरे ऊपर है,कि क्या तू चुनता है..

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