...

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जनहित की जड़ की बात - 15
अन्न भरे भण्डार है ,
भूख प्यास अपार है ?
सबकी बनी है सरकारें ,
हाल यही हर बार है !!

भूखे देश एक सौ सात है,
चौरानवे नंबर हमार है !
अक्ल की कमी नहीं,
नीयत ही बेकार है !!

किसान कर्ज दार है,
मेहनत बेशुमार है !
कम दामी बाजार है,
खुदकशी का द्वार है !!

मजूर बेरोजगार है,
मालिक घर बहार है !
अपराधी तरमतार है,
बुद्धिजीवी बेज़ार है !!

अपराधी उम्मीदवार है,
स्वार्थ भरा संसार है !
दबा दुबका जनहित है,
स्वहित हर घर द्वार है !!

बड़े बड़े प्रश्न खड़े है,
उत्तर की दरकार है !
जन में ड़र है नेता का,
वो इस कदर खूंखार है !!

एक जुट सब हो जाओ,
गीता का यही सार है !
सर उठाके जीने के,
हम सब भी हकदार है !!

- आवेश हिन्दुस्तानी
दिनांक 18.10.2020