...

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जीवन और मृत्यु
एक नदी के
दो किनारों की तरह हैं
जीवन और मृत्यु,
सदैव चलते हैं
एक दूसरे के समानान्तर..
एक के होने से ही
दूसरे का अस्तित्व परिभाषित है..

प्रवाहित होता है प्राण
अनवरत निरंतर
कभी स्वछंद उच्श्रृंखल झरने सा
तो कभी शांत शीतल
गहरी नदी सा..
सिंचित होता है चेतना का बीज
मन की उर्वर...