वो....
सर्दी की सुबह की धूप के एहसास सा है वो।
अच्छा लगता है, उसके साथ होना,
मेरे लिए कुछ खास सा है वो।
हूँ रेत के जंगल का भटका सा मृग मैं,
मेरी कभी ना बुझने वाली प्यास सा है वो।
है भीग जाना जिसमे, इस दिल की एक ख़ाहिस,
मेरे लिए सावन की उस बरसात सा है वो।
दो अलग अलग जिस्म है हमारे,
पर वो मुझे खुद का हिस्सा सा लगता है।
हम...
अच्छा लगता है, उसके साथ होना,
मेरे लिए कुछ खास सा है वो।
हूँ रेत के जंगल का भटका सा मृग मैं,
मेरी कभी ना बुझने वाली प्यास सा है वो।
है भीग जाना जिसमे, इस दिल की एक ख़ाहिस,
मेरे लिए सावन की उस बरसात सा है वो।
दो अलग अलग जिस्म है हमारे,
पर वो मुझे खुद का हिस्सा सा लगता है।
हम...