...

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यकीन!!
सोचती थी तुम रोशनी गुमसुम सी है
खुद में झांक कर तो देखो
सितारा भी मिल जायेगा !

सोचा ना था तुमने दुआएं पूरी होती भी हैं
इजाजत दे कर तो देखो
रास्ता भी खुल जाएगा!

मन ये तुम्हारा शांत समंदर सा रेहता हैं
मेरी आवाज़ सुनो ये केहता हैं
क्या याद नही उसे की तुम्ही ने आज तक उसे संवारा हैं

क्या भूल गई हो वो बचपन का खिलखिलाकर हंसना
खुद में ही गुम हो जाना
क्यों फिर आज दिल दहलाने के रास्ते ढूंढती रहती हो |

चेहरे से तुम्हारे नूर खो सा गया हैं
वापिस आने के इंतजार मैं रहती हो
भरोसा खुद पे करके तो देखो
वक्त की भी हार मान जायेगा

दिवारे भी आजकल बाते करनी लगी हैं
बंद कमरे भी हसने वो लगे हैं
भूल गए हैं वो की जब भी तुम गिरी ,
वापिस मजबूत खड़ी हुईं हो

यकीन का ये पौधा न जाने मुर्झा सा गया हैं
मुझमें भी खाद भरो यह कहता हैं
याद नही शायद
की तुम्ही ने आज तक उसे निडर खड़ा किया हैं

भूल गए हैं पतझड़ के वो पत्ते की लड़खड़ाने के बाद
खुद के खिलाफ इंकलाब की घड़ी को तुम्ही ने तो सांझा हैं|

बस अपने अंदर के डर की रिहाई अब बाकी हैं
करके यह देखो भरोसे का गुल खिल जायेगा
बहार की रौनक का चांद भी दिख जायेगा !!
© Ztar.