...

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आखिर कब तक
कायनात में सब नक्षत्र समय के इतने पाबंद क्यों है?
सूर्य के इर्द गिर्द घूमता अनुशासित ब्रह्मांड क्यों है?

पैसे की अंधी दौड़ के पीछे हर तरफ इतनी दीवानगी क्यों है?
कारोबार में राजनीति और राजनीति में हावी कारोबार क्यों है?

हम इस कदर बेबस,लाचार,खुद से ठगे से क्यों है?
कुछ ना बोलने की राह, ना सुनने की चाह क्यों है?

मेरे शहर में हर इंसान इतना मजबूर क्यों है ?
अच्छे दिनों की अपेक्षाएं हमसे दूर क्यों है?

क्या बताएं सपनों को हमसे छीनता कौन है?
चारों और से उठ रहा अजब सा क्यों मौन है?

इस कदर हालात में उलझे क्यों सब अपने है?
बदलाव के टूट कर बिखरे हुए क्यों सपने है?

अब शहर के लोग क्यों इस कदर परेशान हैं?
रोजमर्रा की समस्या में क्यों उलझे जवान है?

कोई तो बताए समस्याओं से जूझने की युक्ति
आखिर कब तक मिलेगी इन सवालों से मुक्ति

© PJ Singh