...

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पहचान
कहाँ खोए हो तुम, क्या सोच रहे हो?
यही न कि क्या ये वही ज़िंदगी है,
जिसकी तलाश में हम - तुम भटकते रहे,
क्या ये वही ऐशो-आराम है
जिसकी चाह हम - तुम रखते रहे,
न सूरज के निकलने का पता चलता है
न तो कभी शाम के ढलने का,
दिल भी बेचैन है, दिमाग़ भी परेशान है,
हालांकि...