...

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ऐसे मिलो तुम हमसे......
ऐसे मिलो तुम हमसे सनम, चाह अधूरी न रहे कोई,
न कर सके जुदा ये जहां हमें, मज़बूरी न रहे कोई।

यूँ ही पुष्प प्रेम के जीवन में, खिलते रहे सदा हमारे,
बाहों में ऐसे आओ बलखाकर, अब दूरी न रहे कोई।


हर दिन उजला तेरा रूप निहारूँ, हर रात यूँ सिंदूरी हो,
तेरे नयनों का बनूँ भ्रमर मैं, चाह तेरी सब पूरी हो।

कर लूँ यूँ आलिंगन तेरा, रीति-दस्तूरी न रहे कोई,
बाहों में ऐसे आओ बलखाकर, अब दूरी न रहे कोई।

© विवेक पाठक