लब इस कारण रुक जाते
आतुर है लब तक आने को, पर रुक जाती चिंतन कर के। जो है वो कही खो ना जाये, दब जाती भय चिंतन कर के।। भय बड़ा भयानक होता है, अच्छे अच्छे नर हिल जाते। अंदेशे अनहोनी नही हो, बस लब इस कारण सिल जाते।। बोले तो बोलेगा ऐसा तुम, उनसे आखिर क्यों बोला। जो पट हिरदे के बंद रहते, उनको स्वार्थवश क्यों खोला।। है बहुत विवशता ज्ञात मुझे, सुनकर विचलित वो हिल जाते। उनका विश्वास आबाद रहे , बस लब इस कारण सिल जाते।। पड़ा राह का पत्थर था, उन हाथों ने अवलम्ब दिया। प्रकट करुं निज भावों को, जोखिम था पर न विलम्ब किया।। अंतर्मन के अपनेपन से हिय , सहज सुमन जहाँ खिल जाते। उनको पछतावा हो न कभी, बस लब इस कारण सिल जाते।
अवलम्बक से अपनापन हो, यह सहज प्रवृत्ति मानव की। सुंदर पुष्प चमन में वो, मेरा हो, प्रकृति मानव की।। ईश्वर की इच्छा तो निश्चित, प्रयास बिना सब मिल जाते। क्यो कह प्रभु का अपमान करें, बस लब इस कारण सिल जाते।।
अवलम्बक से अपनापन हो, यह सहज प्रवृत्ति मानव की। सुंदर पुष्प चमन में वो, मेरा हो, प्रकृति मानव की।। ईश्वर की इच्छा तो निश्चित, प्रयास बिना सब मिल जाते। क्यो कह प्रभु का अपमान करें, बस लब इस कारण सिल जाते।।
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