...

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मौसम आशिक़ाना
काली घटाएँ घिर घिर आये, मंजर सुहानी शाम सा है
बादल गरजे बिजुरी चमके, हृदय में कोलाहल सा है

कोयल कुहू - कुहू गाने लगी है, मोर खुशी से नाचे है
ऊँचे पहाड़ों से झर झर करके, मधुर ध्वनि से झरना बहे

लहराती बलखाती नदिया, मिलने चली समन्दर से है
उस पार मेरे सजना का गाँव, प्रीत का पुल कर पार चली मैं

बादल चले धरा से मिलने, बनकर बूंदें रिमझिम रिमझिम
बूंदों से मिल कर के धरा भी, शर्म से हुई पानी - पानी है
© ऊषा 'रिमझिम'