...

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koi hisab nahi milta...
दम बा दम खत्म होती साँसों का,
क़दम ब क़दम बढ़ते रहते फसलों का,
कोई हिसाब नहीं मिलता,
तू जो पास नहीं मिलता,

बदलते मौसमों की पहचान सा,
बेरुखी वाले अंदाज़ में भी तू ख़ास था,
पर अब हाथ नहीं लगता,
तू अब खास नहीं लगता,

तपती धुप में एक घनी छाँव सा,
दरिया किनारे डूबती नाव सा,
अब तुझसे हौसला नहीं मिलता,
राइट पर अब तेरा नाम नहीं लिखता,

हर याद में जैसे फरियादी बनकर,
हर शिकवे गिले में बेक़रारी बन कर,
तुझको दुआओ में अब नहीं मांगता,
इतना भी अब तुझको नहीं चाहता,

खत्म होती एक ग़ज़ल के आखिरी शेर में,
वाह से आह तक के ये सफ़र में,
"जावेद" अब ये बात तो नहीं बोलता,
पर सच में तुझको ही हूँ सोचता..
© y2j