याद तुम्हारी....!
अनजाने अजनबी शहर में
बोझिल अलसाई सुबह में
धुंधलाई ख़ामोश शाम को
याद तुम्हारी एक छोटी सी
सुंदर प्यारी सी मैना बन
मेरे कमरे में आ जाती है,
और तुम्हारे मन की पीड़ा
मेरे कानों में कह जाती है,
कहती मुझसे बहुत दूर तुम
मेरा पथ निहार रही हो
और प्रतीक्षा है तुमको मेरी,फिर
पल दो पल को पास बैठ कर
बाते होंगी, शिकवे होंगे
कुछ होटों से, कुछ आंखों से,
सांसों को फिर आस बांधती
याद तुम्हारी मैना बन कर
मेरे कमरे में आ जाती है....!
बोझिल अलसाई सुबह में
धुंधलाई ख़ामोश शाम को
याद तुम्हारी एक छोटी सी
सुंदर प्यारी सी मैना बन
मेरे कमरे में आ जाती है,
और तुम्हारे मन की पीड़ा
मेरे कानों में कह जाती है,
कहती मुझसे बहुत दूर तुम
मेरा पथ निहार रही हो
और प्रतीक्षा है तुमको मेरी,फिर
पल दो पल को पास बैठ कर
बाते होंगी, शिकवे होंगे
कुछ होटों से, कुछ आंखों से,
सांसों को फिर आस बांधती
याद तुम्हारी मैना बन कर
मेरे कमरे में आ जाती है....!