...

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आत्मपरिचय
" मैं जग जीवन का भार लिए फिरता हूं
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूं,
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं सांसों के दो तार लिए फिरता हूं!
मैं स्नेह सुरा का पान किया करता हूं,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूं,
जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूं!


___ हरिवंश राय बच्चन