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# वो बचपन
वो बचपन भी कितना सुहाना था,

जिसका रोज एक नया फसाना था ।


कभी पापा के कंधो का,

तो कभी मां के आँचल का सहारा था।


कभी बेफिक्रे मिट्टी के खेल का,

तो कभी दोस्तो का साथ मस्ताना था ।


कभी नंगे पाँव वो दोड का,

तो कभी पतंग ना पकड़ पाने का पछतावा था ।


कभी बिन आँसू रोने का,

तो कभी बात मनवाने का बहाना था


सच कहूँ तो वो दिन ही हसीन थे,

ना कुछ छिपाना और दिल मे जो आए बताना था ।