...

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**** दहलीज़ के पार ***
बंध गई थी एक दिन ,पी के आंगन में खूंटे से,
वही था सँसार उसका ,वही उसकी दुनिया थी,

दहलीज़ के पार खड़े थे ,हज़ारों ख़्वाब उसके,
वहीं नोचे थे पँख , छीन लिए थे अंदाज़ उसके,

आँखों से बह गए थे आज ,खुली आँखों के सपने,
उसे लूटा था दुनिया ने ,निमित्त बने थे उसके अपने,

दूर क्षितिज से निकलेगा चाँद ,एक दिन उसके लिए,
रात ढलेगी और सुबह होगी , एक दिन उसके लिए

आग़ोश में होगा ,हर एक सितारा ,जी भर के मुस्कुरायगा ,
दहलीज़ के उस पार खड़ा ,हर एक सितारा जगमगायेगा ।।

-पूनम आत्रेय

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