...

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परवरिश




शादी कर वह बंद आंखो से

आती हे शौहर के घर दौड,

परिवार की लाडली माता पिता समित

अपने सपनो को छोड।



लाख गुना पतीसे होशियार,

बच्चो के लिए घर बैठे आखिर।

अपना भविष्य क्या?जरासी भी आहट उसके मन ना आती।

बच्चा मेरा हैे परम कर्तव्य,यह बात मन को वह समझाती।



घर के काम से मिलते ही फुरसत,

बच्चो पर करे संस्कार।

उसका तो सिर्फ यही लक्ष है,

दे बच्चे के जीवन को योग्य आकार।



बच्चे के कुछ अच्छे बोल सून,

"बच्चे का बाप कौन है"उतरेंगे उसी के गुण !

करे कभी शैतानी अगर, निकले मूहसे अपबोल,

" मां का भी तो है लाडला" उसी के यह सब अवगुण।



मां तो है बुद्धू, अकल की अंधी

वह तो सिर्फ घर के काम की।

पापा दप्तर जाये,पैसा लाये

मजबुरन तेरे साथ वह रह ना पाये।



मां की ममता, त्याग, प्यार कि मूर्ती

यह उपमा सिर्फ दुनिया को दिखावा है।

अंधकार कर मां के उपर,

सिर्फ पैसा बाप का दिखाया है।



पिता सिर्फ हे तेरा "त्यागी"

यह बच्चो के मन पिढीयोंसे रूजवाया है।

किसी और के मां बाप ने ही

हररोज यह जहरीला बीज बोया हैl

✍️सौ. स्मिता विजय शिंदे.
(सभी ससुराल वालों के लिए लागू नहीं)
© @smi