...

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परीक्षा

कुछ सपने
पलकों पर सजाए
कल को संवारने
अपना आज गंवाए
एक एक पल
वो इंटरनेट ब्राउजिंग
किताबें लेक्चर्स
न जाने कितना कुछ
दिमाग में फीड करते करते
दिन बीते

कुछ अरमान
कुछ बनके दिखाए
कुछ करके दिखाए
हम भी कुछ हैं
यूं ही नहीं हमने
किताबों की दुनिया
में ये साल बिताए

कुछ रुपए
पिताजी से मांगे
कभी खुद बचाए
कभी दोस्तों से उधार मांगे
कभी पार्ट टाइम जॉब
से कमाए
फीस भरी फॉर्म भरा
एक एक पल
झोंक दिया
इच्छाओं को मारा
दोस्तों से मुंह फेरा
जैसे जोगी तपस्या में बैठे
वैसे ही डाला डेरा

परीक्षा आई
एक एक चीज़ जुटाई
बस में धक्के खाए
ट्रेन में खड़े रात बिताई
घड़ी के कांटे जैसे भागे
सारे प्रश्न हल कर डाले
एक उम्मीद सच होती
दिखी
जब तक घर पहुंचे पहुंचे
परीक्षा रद्द की खबर मिली

ये साल यूंही बीत गया
उम्र थोड़ा और आगे बढ़ी
फिर से गिनती गिन्नी है
फिर से शुरुआत करनी है l
जहां थे वही आ गए
कुछ सोच कर
मन मसोस कर
कभी किस्मत को
कभी सिस्टम को
कोस कर
कुछ सो गए
कुछ खो गए
कुछ ने हार न मानी
फिर से रम गए
इस बार न सही
तो अगली बार सही



© Shraddha S Sahu