2 views
तू धरती तो मैं हूँ गगन
मैं सूरज सा ज्वालापुंज, तू है शीतल चाँदनी,
मैं हूँ दिन का उजाला, तू है रातों की रोशनी।
मुझसे नज़र मिलाओ तो आँखें जल जाती,
तुझसे नज़र मिलाकर ऑंखें ठंडी हो जाती।
मैं ग्रीष्म की तपती धूप, तू सावन की फुहार,
मैं लू के थपेड़ों सा, तू है सुरभित सर्द बयार।
मैं पर्वत सा अडिग-अचल, तू नदिया सी चंचल,
मैं कठोर हूँ पाषाण सा, तू फूल समान कोमल।
मेरे भीतर है आग ही आग, तेरे अंदर है जल,
मैं कर्ण-कटु शब्द, तू किसी शायर की ग़ज़ल।
मैं साहिल हूँ तो तू है सागर की लहर जैसी,
मेरे क़रीब आकर लौट जाती, ये बेरुख़ी कैसी।
भिन्न हैं हम एक दूजे से, असंभव है हमारा मिलन,
समानांतर रेखाएँ हैं हम, तू धरती तो मैं हूँ गगन।
© दुर्गाकुमार मिश्रा
Related Stories
19 Likes
4
Comments
19 Likes
4
Comments