Nature
तो तुम्हे लगता है-
कि तुम प्रयोजन हो?
जानते हो –
कड़ी दर कड़ी
बढ़ती है
प्रकृति
ओज से भरी
अमृत से लबालब
विकसित फूलों की क्यारी सी
जिसमें
आते हो तुम
भटकते – भ्रमर से
इधर उधर...
कि तुम प्रयोजन हो?
जानते हो –
कड़ी दर कड़ी
बढ़ती है
प्रकृति
ओज से भरी
अमृत से लबालब
विकसित फूलों की क्यारी सी
जिसमें
आते हो तुम
भटकते – भ्रमर से
इधर उधर...