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मनुष्य पर्यावरण का अंग
मनुष्य पर्यावरण का एक अभिन्न अंग है,
उसका जीवन व्यतीत करने का अपना ही एक अलग ढंग है!
पर वो पर्यावरण को आज नुकसान पहुंचा रहा है,
प्राकृतिक स्रोतों को जड़ से मिटा रहा है!
नए नए उपकरणों को उपयोग में ला रहा है,
प्रदूषण को वो और अधिक बढ़ा रहा है!
पृथ्वी के सर्वनाश को नज़दीक ला रहा है,
जीवन के अंत को स्वागत कर स्वयं ही बुला रहा है!

©Garima Srivastava

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