...

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उम्मीद..
बहुत उम्मीद थी ज़िंदगी से मगर
अब ये उम्मीद मुरझाने लगी है

बातों का सिलसिला टूट सा‌ गया है
दिल को ख़ामोशी भाने लगी है

ग़म की चिंगारी दबी है जो सीने में
जिसको ये बारिश भड़काने लगी है

तिरा नाम देखते थे हाथों की लकीरों में
उन‌ लकीरों पे अब हँसी आने लगी है

बहुत मसरूफ़ हैं वो ज़माने से उल्फ़त में
अब मुझको भी तन्हाई खाने लगी है

सुनो यार.! चलो अब कफ़न की तैयारी करो
कि मुझको मौत की नींद आने लगी है