...

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बंदिशें
लड़की हूँ हज़ार बंदिशें हैं मुझ पर
मेरे ही जीवन पर मुझे अधिकार नही है
कटपुतली बन जीना है
यही अस्तित्व बस मेरा है! !

पंख पसारने को खुला आसमां नही है
चार दिवारी मे कैद मुझे रहना है
ख्वाहिशों का गला घोटकर अपनी
औरों की खुशियों के लिए ही बस जीना है
लड़की हूँ हज़ार बंदिशें है मुझ पर! !

हँसना बोलना मेरा
रास किसी को कहाँ आता है
मेरी तो मुस्कुराहट पर भी
इल्ज़ाम लगा दिया जाता है
न किसी से बात कर सकती
न कहीं मैं जा सकती हूँ
मन ही मन घुट-घुटकर
चुपचाप सब कुछ सह जाती हूँ
कभी घर से बाहर कदम पढ़े जो मेरे
आवारा बदचलन मैं कही जाती हूँ
ख़ुद के हक की बात करूँ जब
लड़की हो लड़का बनने की कोशिश मत करो
यही कहकर चुप करा दी जाती हूँ
लड़की हूँ हज़ार बंदिशें हैं मुझ पर!!

माँ-बाप के घर हूँ जब तक
पराया धन मैं समझी जाती हूँ
विहा कर जब ससुराल जाऊँ तो
पराये घर की बेटी कही जाती हूँ
आखिर कसूर क्या है मेरा
जो मेरा अपना कोई घर नही
मेरा ये जीवन भी तो मुझे समर्पित नही है
लड़की हूँ हज़ार बंदिशें हैं मुझ पर !!

कोई नही समझता भावनाएं मेरी
सबको अपनी खुशियाँ ही बस प्यारी हैं
एक नारी के जीवन का
करती तिरस्कार ये दुनिया सारी है
यूँ तो शिकायतें कई हैं मुझे इस जीवन से
पर शिकवा किस्से करूँ
जब लिखा यही भाग्य मेरा
यही मेरी कहानी है
लड़की हूँ हज़ार बंदिशें हैं मुझ पर!!

© K. Ansari