...

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आंखें देखना चाहें
आंखें देखना चाहें तो बहुत कुछ,
देख सकती हैं मगर उजाले में नहीं।

बेहतर है कि चाभी बनना सीखा जाए,
आजकल रिश्तों ने खुद को बंद कर रखा है,
एक गलतफहमी से किसी ताले से नहीं।

अब हर छोटी बात से दिल जलता है,
वक्त से मिले दर्द या किसी छाले से नहीं।

खुशबू हमेशा आती रहेगी कर्मों से,
मिट्टी में खाली गुण प्रभु ने डाले नहीं।

अंदर पड़ा है हमारे एक बहुत बड़ा गुलदस्ता,
बस प्यार के फूल हमनें कभी निकाले नहीं।

आंखें देखना चाहें तो.....
© विवेक सुखीजा