...

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निराशा!
केसे हैंडल करू सब
नही हो पा रहा अब
जज्बातों के भोज तले
दब चुका हूं जब।

ये सब तो जानता है मेरा रब
ना जानें वो भी सुनेगा कब
नई होती बर्दाश्त ये दूरियां अब
देख चुका हूं करके सब
देख चूका हूं करके सब।

था बेखौफ जब
नही थी किसी की भी फिक्र तब
रहता था मस्त अपने खयालों में
था बेपरवाह नही थी किसी की भी सुद तब
हो चुका हूं बेसुद सी मछली के माफिक अब।

ना दिन का पता है ना रात की खबर नही रहता मन में उसके सिवा किसी और का जिक्र
लगी रहती है बस उसी की फिक्र
हां मानता हूं नही कर सकता उससे बात
नही दिखा सकता उसे अपने जज्बात।

ना जाने फिर क्यू आते रहते है उसी के खयालात
डूबा सा रहता हूं उसी की बातों में
थोड़ी उसकी ओर अपनी मुलाकातों में
बस यही सब सोचता रहता हूं रातों में
केसे जीयूं इन हालातों में।

पूछता रहता हूं खुदसे
बस एक ही सवाल
आखिर करा क्या मेने
जिससे हुआ ये बवाल।
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