...

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विदाई ना होती ....
काश हम बेटियों की कभी विदाई ना होती,

विदाई ना होती यह जुदाई ना होती....

कितनी भोली- भाली थी हम उस आंगन से दिल लगाए बैठी थी,

उन खेल खिलौनों को अपना बनाए बैठी थी,

कुछ पलों में ही हम सदा के लिए पराई ना होती,

काश हम बेटियों की कभी विदाई ना होती....



जिसे ना पहले देखा था कभी , ना था अच्छे से जाना,

उसका साथ अब जिंदगी भर है निभाना,

अपने घर जाने के लिए भी औरो की इजाजत की मोहताज ना होती,

काश यह रस्म कभी बनाईं ही ना होती,

काश हम बेटियों की कभी विदाई ना होती....



जिन आंखों से ओझल हुए थे ना कभी,

अब उन मां -बाबा से हमारी जुदाई होगी,

इस सोच से हम घबराई ना होती,

काश हम बेटियों की कभी विदाई ना होती....



महफ़िलो में हंसती थी खिल -खिलाकर ,

अब बस दिल में गहरी तन्हाई सी होगी,

कौन समझेगा हमें , किसे हम अपना दर्द बताएं,

जज़्बातो की यह गंगा किस के आगे बहाए,

यह बात हमारे दिल में आई ही ना होती,

काश हम बेटियों की कभी विदाई ना होती.............