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Gaon ki beti
Gaon ki beti


उठती है बेटी सुबह जल्दी

पानी के लिए जल्दी-जल्दी


खीचती रस्से भारी भारी

है घर के लिए रोज की तैयारी


आता है जब समय

घर की सफाई का


नहीं आता है नजर एक भी

पत्ता डला जमीन पर


बड़ती है जब समझ उसकी

उम्र के पहलू के साथ साथ


संभालती है घर और बाहर की

पूरी जिम्मेदारी साथ साथ


करती खेती-बाड़ी

हाथ बटाँती हर बार


चूल्हे पे भी बना लेती है

खाना बेहतरीन हर बार


है हाथों में स्वाद उसके

चूल्हे की रोटी बंती लाजवाब


लीपती है चूल्हा, आंँगन

सजाती है घर, दुवार


करती है पढा़ई जोरो सोरो से

आती है अब्बल हर बार


दिन से रात तक लगी रहती है

कर लेती है घर के सारे काम


हो जाता है जब रिश्ता पक्का उसका

बड़े घर के अमीर लड़के के साथ


चली जाती है वह छोड़

चूल्हा चौका घर बार


पति के रंग में

रजने-बसने उसके दुवार


हो जाती है सदा पति की

उम्र भर के लिए


जन्म देता है बेटी को कोई

और ले जाता है उसे कोई और


जो अपने लिए कुछ नहीं कर पाती है

करती रहती है परिवार के लिए


एक घर को नहीं बल्कि

संभालती है दो दो घरों को


✍️ अनुभा पुरोहित चतुर्वेदी

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