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मजबूरी
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
चोरी भी लाजमी है,
क्योंकि यह मेरी मजबूरी है।
काम नहीं मजबूरी है,
दो वक्त की रोटी नसीब है;
किस्मत नहीं मेहनत है,
पर ये मेरी मजबूरी है ।
छत ना होय,
बेइमानी जो रोए;
यह भ्रष्टाचार,
मेरी मजबूरी है ।
ईमान जो मैं रखना चाहूं,
ये धब्बा जो में हटाना चाहूं;
अपसोस ये तो कोई समझ ही नहीं पाया,
ये मेरी मजबूरी है।
© Piyush Padwal
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
चोरी भी लाजमी है,
क्योंकि यह मेरी मजबूरी है।
काम नहीं मजबूरी है,
दो वक्त की रोटी नसीब है;
किस्मत नहीं मेहनत है,
पर ये मेरी मजबूरी है ।
छत ना होय,
बेइमानी जो रोए;
यह भ्रष्टाचार,
मेरी मजबूरी है ।
ईमान जो मैं रखना चाहूं,
ये धब्बा जो में हटाना चाहूं;
अपसोस ये तो कोई समझ ही नहीं पाया,
ये मेरी मजबूरी है।
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