"मां"
"कोई "मां" को बयां नहीं कर सकता,ऐसा कोई शब्द ही नहीं जो "मां" को बयां करें।बस थोड़ी कोशिश की "मां" को जानने की।" - निलेश प्रेमयोगी
मैंने हर किताब पढ डाली
मैंने हर कहानी पढ़ डाली
पर मैंने कुछ ना पाया
मैं खाली हाथ ही आया।
मैंने देखा 'प्रेम' हजारों तरह का
पर "मां" जैसा 'प्रेम' कही पाया नहीं
"मां" जैसी करूणा, ममतामई छवि
शायद इश्वर ने कही भी बनाईं नहीं।
"मां" तू कैसे ऐसा कर जाती है,कैसे सब सह जाती है
रोती...
मैंने हर किताब पढ डाली
मैंने हर कहानी पढ़ डाली
पर मैंने कुछ ना पाया
मैं खाली हाथ ही आया।
मैंने देखा 'प्रेम' हजारों तरह का
पर "मां" जैसा 'प्रेम' कही पाया नहीं
"मां" जैसी करूणा, ममतामई छवि
शायद इश्वर ने कही भी बनाईं नहीं।
"मां" तू कैसे ऐसा कर जाती है,कैसे सब सह जाती है
रोती...