...

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खेल किस्मत का
के जब जब मैंने उससे दूर जाने की कोशिश की ,
तब तब मेरी किस्मत मुझे उसके करीब लाती गई।

नहीं समझ पा रही थी मैं यह खेल किस्मत का ,
क्यों हमारी किस्मत एक दूसरे से टकरा थी रही।

अगर लिखा था हमारा मिलना किस्मत में तो फिर ,
क्यों हमारे प्यार में इतनी सारी बाधाऍं थी आ रही।

अगर होता उसके दिल में भी सच्चा प्यार मेरे लिए ,
तो फिर मैं उससे दूर जाने की कभी सोचती भी नहीं।

मिलकर भी बिछड़ गए हम दोनों शायद हम दोनों ,
ही एक दूसरे के लिए कभी भी बने थे ही नहीं।

पर फिर भी हमारी किस्मत हम दोनों को एक दूसरे के ,
सामने हर बार पता नहीं क्यों लाकर खड़ा है कर देती।

के जब जब मैंने उससे दूर जाने की कोशिश की ,
तब तब मेरी किस्मत मुझे उसके करीब लाती गई।