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!... नाकाम मोहब्बत...!
एक मोहब्बत नकाम मोहब्बत मुझको तो ले डूबी है
इक मोहब्बत करके मैं भी दुनिया से आजाद हुई
एक ही लैला इक ही मजनू को जाने क्यूं जग सारा ये
हर कूंचे में एक कहानी इश्क़ की जब आबाद हुई!

दिल अपना क्यूं दे बैठे हो एक हीर नही दुनिया में बस
इक फरहाद ते इक ही रांझा, क्यूं नक्स ए पां पे चलते हो
एक दुनिया है इक ही अल्लाह, इक पर वाहिद जान मेरी
इक दिल है और इक ही इश्क क्यूं सब पर कुर्बान करु!

एक रोग लगा है सीने में इक तबीब ही क्यूं इलाज करे
इक ही कामिल मुर्शिद मेरा, और किस्से फिर में बात करु
इक आह भरू, एक जां जाए अक्सर ऐसा होता है
इक सजदा तो कर लू मैं, और फिर थोड़ा आराम करु!

© —-Aun_Ansari