...

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आदिप्रेम
छोड़ के वैभव राज पाट का
मन में बस एक विकल्प लिए
वन में तप को चली है गिरिजा
शिव प्रेम का संकल्प लिए
समझाया था मात - तात ने
रोक न पाया किसी बात ने
बनी वैरागी शैल कुमारी
छोड़ छाड़ सब दुनिया दारी
तप करते बीते दिन, और बीत गए कई साल
स्वर्ण सुकोमल कंचन काया ,बनी सुखी सी डाल
ध्यान छोड़ आए फिर स्वयं श्री महाकाल
बोले देवी मत बनाओ ,अब तुम अपना ऐसा हाल
ज्ञात प्रेम है मुझे तुम्हारा ,पर कुछ नहीं मेरे पास
न है कोई राज महल ,है तो बस एक कैलाश...