...

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सोची थी.................
सोची थी,कर जाऊंगी पार समंदर को
मगर , किनारे पहुंच कर ही डूब गई।

सोची थी, खरीद लाऊंगी सारी खुशियों को
मगर ,कुछ और गमों को खरीद लाई।

सोची थी, दूंगी एक प्यारा सा तोहफा सबको
मगर , सबको को उसी के हाल पर छोड़ आई।

सोची थी, सजा दूंगी माला से कमरे को
मगर ,फिर से किताबो के ढेर मैं दब गई।

सोची थी, कि सोचूंगी मगर अब सोचती हूं
कुछ भी न सोचूंगी, जो भी हो देखोगी।

कसम खुदा की , अब सच के सिवा
कुछ ना कहूंगी।