...

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एक और दामिनी शहीद हो गयी
माना के कपड़े छोटे थे उसके,
माना की कपड़े छोटे थे उसके ,
पर सोच तुम्हरी बड़ी थी क्या?
सड़क पर वो खड़ी थी ,
गाड़ी उसकी खराब थी,
दिल में उसके भरोसा था,
पर उसकी मदद को इंसानियत खड़ी थी क्या?
न कोई शरीफ़ज़ादा रुका वहाँ,
न किसी माँ के लाल ने मदद का हाथ बढ़ाया,
डरी सहमी सी वो बेचारी,
कहते हो जिसको सब अबला नारी ,
हाँ वही, हाँ एक अबला नारी थी वो,
हालातों की मारी थी वो,
गाड़ी उसकी ख़राब थी,
सड़क वीरान और सुनसान थी,
हिम्मत जुटाती वो बढ़ने लगी थी,
एक गाड़ी को देख उम्मीद रखने लगी थी,
गाड़ी रुकी एक आकर उसके करीब जब,
बैथे थे उसमें एक अंकल,
उम्र जिनकी होगी लगभग पैसठ या सत्तर
देख बुजुर्ग उसमें जागी उम्मीदें,
लगा मानो मिल गयी खोयी रसीदें,
बताई जो उसने अपनी परेशानी ,
अंकल जी बोले," घबराओ मत बिटिया रानी।"
शब्द ये जैसे उसको दे गए तसल्ली,
बेफ़िक्री के संग वो अंदर गाड़ी में हो ली।
गाड़ी चली,आगे बढ़ी मोड़ तलक ,
दाएं के जगह बाएं मुड़ चली सड़क पर,
बहुत रोकने की कोशिश भी की,
वो गाड़ी एक फार्म हाउस पर जा रुकी,
घसीटकर किसी माँ की गुड़िया ले गया वो दरिंदा,
वही तो था उसके साथियों का बसेरा,
अभी चन्द लम्हों पहले की बात ही तो है,
उसी अंकल ने जब बेटी कहा था,
क्या ये होता है बेटी के साथ ,
मन में उसके उठे ढेरों सवाल,
रोई बहुत , बहुत चीखी चिल्लाई,
बख्श दो मुझे ,कितनी गुहार लगाई,
पर इंसानियत से परे थे वो ,
ज़िस्म की हवस से भरे थे वो ,
बेटी कह इज्जत को उछाल दिया
दिल भरने के बाद किसी किनारे पे डाल दिया
बेसुद, उजड़ी सी पड़ी थी वो
रोई बोहोत जब जगी थी वो।
माँ बाप की याद उसे आने लगी,
उनकी इज़्ज़त की परवाह सताने लगी,
न सोचा कुछ भी वो बढ़ती चली,
चलती रेल के आगे वो कूद गई ,,
जिस्मों की भूख के खातिर,
हवस और झूठ के खातिर,
एक बार फिर इंसानियत की तौहीन्द हो गयी,
एक और दामिनी शहीद हो गयी।

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