...

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एक और दामिनी शहीद हो गयी
माना के कपड़े छोटे थे उसके,
माना की कपड़े छोटे थे उसके ,
पर सोच तुम्हरी बड़ी थी क्या?
सड़क पर वो खड़ी थी ,
गाड़ी उसकी खराब थी,
दिल में उसके भरोसा था,
पर उसकी मदद को इंसानियत खड़ी थी क्या?
न कोई शरीफ़ज़ादा रुका वहाँ,
न किसी माँ के लाल ने मदद का हाथ बढ़ाया,
डरी सहमी सी वो बेचारी,
कहते हो जिसको सब अबला नारी ,
हाँ वही, हाँ एक अबला नारी थी वो,
हालातों की मारी थी वो,
गाड़ी उसकी ख़राब थी,
सड़क वीरान और सुनसान थी,
हिम्मत जुटाती वो बढ़ने लगी थी,
एक गाड़ी को देख उम्मीद रखने लगी थी,
गाड़ी रुकी एक आकर उसके करीब जब,
बैथे थे उसमें एक अंकल,
उम्र जिनकी होगी लगभग पैसठ या सत्तर
देख बुजुर्ग उसमें जागी उम्मीदें,
लगा मानो मिल गयी खोयी रसीदें,
बताई जो उसने...