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हे पथिक ( हरिगीतिका छंद )
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पथ कौन सा चुन कर पथिक तुम ,अग्रणी बढ़ते रहे
सब संग साथी छोड़ जग में , तुम किले गढ़ते रहे
छल ,द्वेष मंडित स्वार्थ सहचर ,उर भरे आहत करे
ममहित प्रथम रख न्यून जन-जन, ईश भय से कब डरे

जब सत्य सुंदर मिथ्य का क्यों ,कर रहे व्यापार हो
निज मूल्य से निर्मित मनुज ही, सृष्टि का आधार हो
सेवा विनय परहित सुमन जब ,राह जीवन में खिले
मकरंद सुख आशीष सौरभ ,जन्म भर तुमको मिले

©️प्रिया 'ओमर '
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