...

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power of pen
भवसागरीय जीवन के बवंडर में किसी से प्रेम की कल्पना मैं क्यू करूँ????
तूफान ही होते हैं जब प्रेम की पतवार में ,और कुछ सोच कर आगे मैं क्यू बढूँ ???
पैर पसारकर खडे नहीं रह सकते, जब
संसार में ,
अप्रत्यक्ष तौर पर कुछ भी कह सकते हैं लोग, मैं क्यू करूँ किसी से ऐसा व्यवहार ???
जब मैं फंसी हूँ खुद मंझधार में ,

मुझमें प्रत्यक्ष कहने व सुनने की आदत है, मैं पीछे से वार नहीं करतीं, कयोंकि धार हैं इतनी मेरी "कलम" में जितनी कि तलवार में ।


© kavita solanki -'poem'