...

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एक बूंद का सफर...
एक बूंद जो बिछड़ी बादलों से
इठलाना उसका कमाल का था

मंजिल बनी ख्वाबों सी थी
और रास्ता बना अंजान सा था

चातक की प्यास की आस थी
या उसे सीप में मोती बनना था

किसी पत्ते पर लहराना था
या किसी तार पर लटकना था

या किसी कोमलांगी को छू कर
उसे पी की याद दिलाना था

किसी धार के संग मिल कर
या सागर से जा मिलना था

अरमान हज़ारो मन ले कर
सफर धरती तक करना था

किस्मत नायाब थी उसकी
उसे सृजन का हिस्सा बनना था

गिरी जाकर एक बीज पर
जिसे अंकुर बन कर खिलना था


© * नैna *