...

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बूँद
छोड़कर घर अपना बादलों का,
चल पड़ी एक बूँद अकेले लड़ने,
क्षणभर का है सब खेल सारा,
हर पल को जीने की उसमें चाह,
अंत उसका उसके सामने खड़ा,
पर डर न उसमें एक सेर भर का,
न चाह किसी बूँद के मिलने की,
न ग़म किसी बूँद से बिछड़ने की,
ऐसी ही कुछ तेरी ज़िंदगी इंसां,
हर क़दम है संघर्ष करना पड़ता,
हर शख़्स यहाँ अपना कहलाता,
वक़्त पड़ने पर है मुँह मोड़ लेता,

© feelmyrhymes {@S}