...

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दहेज
मां मैं एक तेरे दिल का टुकड़ा हुं,
इस घर का मुखड़ा हुं।

पता नहीं तु कैसी रित निभाती हैं,
मुझे भी उनको सोमप रही हैं
और तु ही उपहारो का मूल्य चुकाती हैं।

देख मैं संग में ना कुछ ले जाऊंगी,
तेरी कोख खाली करके जा रही,
तेरा घर ना खाली करके जाऊंगी।

होगी ये परम्परा,
तेरी परम्परा ही तोड़ के जाऊंगी,
क्या तु मेरी खुशियां खरीद पायेगी,
पैसों के लोभी होगें,
उन संग तेरी बेटी ना रह पायेगी।

हां तु कहती हैं मेरा फर्ज है ये,
बेटी से बढ़कर फर्ज निभायेगी।
सास -ससुर के ताने सह लुंगी,
मोल के रिश्ते ना सह पाऊंगी।

मुझे रखले या इन रीतियों को ,
मैं इक ही रिश्ता निभाऊंगी,
दहेज ना संग ले जाऊंगी,
मां मैं ये रीत ना निभाऊंगी।

© Jyoti Swami

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