...

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फितरत से मजबूर मैं..
फितरत से मजबूर मैं..

अपनी फितरत न बदल सका..

दफ़न कर अपनी मोहब्बत को,

उन्हें मैं अपनी दुल्हन सौप चुका।

अब रहता हूं अपनी तन्हाइयों में..

फिर से अकेले..

सच कहूं तो मैं इस दुनिया में,

जीते जी ही मर सा गया।।

फितरत से मजबूर मैं..

अपनी फितरत न बदल सका..
© prashu✍️