काँच के प्याले में डूबते घरौंदे
मुस्तकबिल दुनिया के भरे पड़े हैं मधुशालों में,
कई घरौंदे डूब गए छोटे से काँच के प्यालों में।
दिलेर समझ ख़ुद को मौत में जिस्म डुबोते हैं,
जानें क्या मिलता है लेकिन सब कुछ खोते हैं।
शेख़ी नहीं बनती है ये ज़हर का पानी पीने से,
शान-ओ-शौकत तो मिलती है ख़ून पसीने से।
पी नाले का पानी बदज़ात कहीं मर जाते हैं,
किस हक़ से जानें ये घर यतीम कर जाते हैं।
बेटी पीछे हो कैसे उसने भी प्याला थाम लिया,
क्या बोलूँ उसने भी दूध के कप में जाम लिया।
मयख़ानें से राहें गुज़री उन पर क्यों जाते हो,
जीत हार जब बन जाए तो क्यों पछताते हो।
सोच ज़रा तू क्या अपनों से बेहतर पीना है,
या फ़िर मौत से बेहतर अपनों संग जीना है।
© jitender Pal अश्रांत जीत
#शराब
#काँच_के_प्याले_में_डूबते_घरौंदे
#jitenderpalquotes
कई घरौंदे डूब गए छोटे से काँच के प्यालों में।
दिलेर समझ ख़ुद को मौत में जिस्म डुबोते हैं,
जानें क्या मिलता है लेकिन सब कुछ खोते हैं।
शेख़ी नहीं बनती है ये ज़हर का पानी पीने से,
शान-ओ-शौकत तो मिलती है ख़ून पसीने से।
पी नाले का पानी बदज़ात कहीं मर जाते हैं,
किस हक़ से जानें ये घर यतीम कर जाते हैं।
बेटी पीछे हो कैसे उसने भी प्याला थाम लिया,
क्या बोलूँ उसने भी दूध के कप में जाम लिया।
मयख़ानें से राहें गुज़री उन पर क्यों जाते हो,
जीत हार जब बन जाए तो क्यों पछताते हो।
सोच ज़रा तू क्या अपनों से बेहतर पीना है,
या फ़िर मौत से बेहतर अपनों संग जीना है।
© jitender Pal अश्रांत जीत
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